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 नारी, जिस की परिभाषा की अभिव्यक्ति कोई व्यक्ति या रचनाकार नहीं कर सकता है, क्योंकि नारी का स्वरूप उस शक्ति् नाम है, जिसकी परिकल्पना कोई नहीं कर सकता है।
    नारी अपने जीवन में हर प्रकार के किरदार को बड़ी सहजता और सुंदरता से निभाती है, और उसका पुरुष के प्रति आत्मसमर्पण की जो भावना उसके जन्म के साथ शुरू होती है, और वह अकल्पनीय है। नारी शक्ति का नाम है जो अपने परिवार के लिए हर उस विकट परिस्थिति से निबटने की ताकत रखती है, बल्कि भविष्य में आने वाले खतरों का सामना करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है।

नारी का स्वरूप:


हर किसी के जीवन में नारी की भिन्न-भिन्न छवि हर मनुष्य के जीवन को प्रभावित जरूर करती है। वह पुरुष के लिए नारी की भूमिका एक मां के रूप में, पत्नी के रूप, में बहन के रूप, में या फिर बेटी के रूप में हो सकती है।
यह हर उस रिश्ते को चरितार्थ करती है, जो हमारी दुनिया ने नारी के लिए बनाए मां के रूप में हमें स्वर्ग की छवि दिखाई देती है। बहन के रूप में मित्र का स्वरूप दिखता है, और पत्नी के रूप में एक सहयोगी जैसी ताकत आपके लिए हर समय बनी रहती है। 
नारी के इन रूपों को हर पुरुष परोक्ष रूप से संबंध रखता है, क्योंकि नारी के बिना पुरुष की परिकल्पना करना भी अतिशयोक्ति होगी। क्योंकि पुरुष अगर आसमां है, तो नारी वह धरा है, जो हर उस चीज को बांधकर रखती है, जिसका अस्तित्व कुदरत के साथ गहनता से जुड़ा है, और शायद इसी वजह से कुदरत ने भी नारी को असीम शक्तियां दी है, जिसकी वजह से वह हर उस किरदार को बड़ी सहजता के साथ निभाती है, बल्कि पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर हर समस्या के निवारण के लिए तत्पर रहती है। ऐसी नारी शक्ति के लिए हम सभी को सदैव नतमस्तक होना चाहिए।


       संसार की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली नारी सदैव समाज का केंद्र रही है, और उसमें अपने असीम कार्य से पूरे जगत को मंत्रमुग्ध किया हुआ है। इसी के कारण उसकी पहचान उसे सबसे अलग बनाती है। प्राचीन काल से अब तक नारी सदैव पूजनीय रही है, इसी कारण शायद हम मां शक्ति के रूप में नारी के इस रूप की उपासना करते हैं।

आज की नारी:
      आधुनिक युग की नारी आज हर चुनौती से सामना करने के लिए तैयार है। जिसकी हमने कोरी कल्पना भी नहीं की थी। आज वह पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में काम कर रही है, अपितु उसके अदम्य साहस का परिचय हर क्षेत्र में देखने को मिलता है, जो कि पुरुष प्रधान समाज में नारी को एक और महाशक्ति का नया स्वरूप दिखाई देने लगा है। आज की नारी शिक्षा के हर क्षेत्र में पुरुष के बराबर हर उस कार्य को करने में सक्षम है, जो कि हमारे लिए बहुत ही गर्व की बात है। आज कि नारी गृहस्थ जीवन के साथ शिक्षा के क्षेत्र में, चिकित्सा के क्षेत्र, में विज्ञान के क्षेत्र में, और देश की सुरक्षा के क्षेत्र मैं भी अहम भूमिका का निर्वहन कर रही है, जिससे नए समाज का नया निर्माण आज दृष्टिगत होता प्रतीत हो रहा है, अपितु नारी का नवनिर्माण 
दृष्टिगत हो रहा है।


बढ़ते युग में नारी की के लिए चुनौतियां:-
"अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आंचल में दूध और आंखों में पानी।।"

उपरोक्त पंक्ति में कवि मैथिलीशरण गुप्त ने आधुनिक  भारतीय नारी की व्यथा को अपनी रचना के माध्यम से बहुत ही सहज रूप से प्रकट किया है। उनकी रचना की सार्थकता इतिहास के उन पन्नों में मिलती है, जो नारी की व्यथा को दर्शाते हैं। क्योंकि इतिहास में बहुत सी ऐसी प्रथाएं जो नारी के लिए बनाई गई थी, उनमें बाल विवाह, दहेज प्रथा, सती प्रथा, और भी ऐसी अनगिनत प्रथाएं नारी पर थोप दी गई थी। जिसके प्रभाव से आधुनिक नारियां भी इससे पूर्ण रूप से मुक्त नहीं हो पाई है।
इस महान युग में नारी के इस स्वरूप के बावजूद भी आज भी नारी कहीं ना कहीं अधूरी सी लगती है। आज भी नारियों के नाम पर लोगों में कहीं ना कहीं तंज कसे जाते हैं, और कई प्रकार की टिप्पणियों का सामना आज की नारी करती है। आज भी नारी को अपने आत्मसम्मान की सुरक्षा का जिम्मा खुद को ही लेना पड़ता है। आज भी नारिया पूरी तरह सुरक्षित नहीं हो पाई है। हमें रोज कोई ना कोई दहेज के नाम पर हत्या या फिर बलात्कार जैसी दिल दहला देने वाली घटनाएं देखने, सुनने, और पढ़ने को मिलती है। अक्सर कारणों में नारी की असुरक्षा में कहीं ना कहीं नारी की भूमिका शिक्षा के अभाव में रहती ही है। शायद इसी वजह से आज के युग में भी भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध को परिवार में अंजाम दिया जाता है।

21वी सदी का युग नारी की प्रगति एवं उनके सम्मान, अधिकार, और शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान देने का युग है,  जोकि समाज को नव शिखर तक ले जाने में अपने अहम भूमिका निभाता है। उन्होंने अपने कौशल के परिचय से यह साबित कर दिया है, कि नारी अबला नहीं बल्कि सबला है।
भारत में आज की नारी की स्थिति में अभूतपूर्व परिवर्तन से देश में सामाजिक विकास की परिभाषा आज अलग बन चुकी है। यदि स्त्री अपने अधिकार की प्राप्ति के लिए किसी भी हद तक जाए तो, वह अपने सम्मान के साथ पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश की प्रकृति मैं अपनी अहम भूमिका प्रदान कर सकती है, और भारत की शक्ति को मां भारती के रूप में एक बार पुन: देश में अपितु पूरे विश्व में अपना परचम फैलाकर सबला शब्द को सार्थक कर सकता है। 
आशा करता हूं मेरा यह ब्लॉक नारी शक्ति की व्यथा त्याग  समर्पण, और वात्सल्य का परिचय आपको जरूर पसंद आएगा।
मेरे ब्लॉक के संदर्भ में हाप की टिप्पणियों का स्वागत है।
लेखक 
हरिशंकर जीनगर 

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