Responsive Advertisement
Responsive Advertisement
हेलो दोस्तों..
एक बार फिर स्वागत है, आप सभी का मेरे ब्लॉग.. Earth Day (पृथ्वी दिवस) स्पेशल 
"सूख चुकी धरा भी" मे
             

जैसा हम सभी को पता है, आज जिस धरती पर हम रहते हैं, जिस धरा से हमें वह सब कुछ मिलता है, जो हमारी जीवन का आकार है, और जो साकार करती है। हमारी उन सभी आवश्यकताओं को, जिनको हम चाहें या ना चाहे तो, भी हमारी धरती मां हमेशा हमें देती रहती है। पर क्या शोषण करते रहना ही हमारा कर्तव्य है, क्या जिस धरा ने हमें बहुत कुछ दिया है, क्या हमारा कुछ नैतिक कर्तव्य नहीं बनता है, कि हम हमारी धरती मां के लिए, कुछ ऐसा करें जिससे खोते प्राण को बचाया जा सके। 

कुदरत से छेड़छाड़ के परिणाम:-

           
आज जिस वसुंधरा को हम महसूस कर रहे हैं, और आज जिस प्रकार की महामारी हवा में जहर बन कर हमारी नसों में दौड़ रही है, एक बार शीशे में झांक कर देखें कहीं ना कहीं इस हवा को विषाक्त बनाने में शत प्रतिशत हाथ इंसान का ही रहा है। हमने प्रकृति स्वरूप के साथ वह सब छेड़छाड़ की है, जो हमें कभी सपने में भी नहीं करनी चाहिए थी। 
             आज हमने हमारी धरा को इस तरीके से कुरूप बना दिया है, जिसकी कोरीकल्पना भी हम नहीं करते सकते है। जिस पृथ्वी के वक्ष स्थल पहाड़ों से अभिभूत हुआ करते थे, उसे खोद कर हमने कचरे के ढेरों में तब्दील कर दिया है।

 भूलते "वसुंधरा" के अस्तित्व को:-

           
पृथ्वी के क्या मायने हैं, हम शायद भूल चुके हैं। यह वसुंधरा इंसान का वह पैराशूट है, जिसके फटने के बाद इंसान का कोई अस्तित्व शेष नहीं रहेगा। 
         
आज हमें जरूरत है, तो इस मां के प्रति अपने पुत्रधर्म को निभाने की, जरूरत है, आज हमें वह सब लौटाने की, जिसको कभी इस धरा ने हमें सोपा है, क्योंकि अगर आज हम अपनी धरती मां को सहज कर नहीं रखेंगे तो, कहीं कुदरत का कानून इंसान के वजूद को ही ना मिटा दें, आज हमें जरूरत है, उस कुदरत से डरने की, जिसने जीवन के लिए इस वसुन्धरा को बनाया है, और इस धरा ने भी अपनी संतान से भी कहीं जाता हमें सहज कर रखा ओर वह सब कुछ दिया है, जो आप कभी अपनी संतान को नहीं दे सकते।

             

आज आपके लिए प्राणवायु, जल, वनस्पति, खनिज संपदा, और भी नाना प्रकार की धन संपदा आपको दी है। पर इंसान इतना खुदगर्ज निकलेगा, कि अपनी मां को ही वह इस तरीके से टुकड़ों में विभक्त कर देगा, और तो और जो इसके श्रंगार के प्रतीक हैं नदी पहाड़, पेड़ पौधे, वन्य जीव इन सभी को नष्ट करके अपने आप को श्रेष्ठ बताने की कोशिश में लगा हुआ है।

मानव के बदलते गुण:-

           

पर इंसान अपने श्रेष्ठता की चक्कर में शायद यह भूल चुका है, कि जो प्रकृति आप को इंसान बना सकती है। रहने के लिए पृथ्वी जैसा स्वर्ग दे सकती है, वही प्रकृति आपसे वह सब कुछ छीनने का हक भी रखती है।
            जिसको आप स्वप्न में भी नहीं सोच सकते है, क्योंकि जब प्रकृति कोई भी निर्णय लेती है, तो फिर वह किसी भी इंसान को संभलने का मौका तक नहीं देती है, कि आपके साथ होने क्या वाला है, और शायद अभी जिस तरह की जहरीली पुरवाई का सामना हम इंसान कर रहे हैं,  शायद कहीं ना कहीं इसे लाने में हम इंसान का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
           

हमने अपने सौंदर्य के चक्कर में हमारी पृथ्व के सौंदर्य को छीना है, इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। हमने अपने भोग-विलास से आसक्त होकर कुदरत से इस तरह छेड़छाड़ की है, जिसके परिणाम हमें आज भुगतने पड़ रहे हैं। इंसान को आज यह समझने की जरूरत है, की कुदरत से बड़ा कोई कानून नहीं है, वह जीवन देना जानती है तो उसे लेने का भी उतना ही हक रखती है।

क्या करें धरती मां के लिए:-

       
आज इंसान को समझने की जरूरत है कि वह अपनी धरती मां के लिए कुछ ऐसा करें, जिससे वह अपने किए गए पर पश्चाताप कर सकें।

       

वैसे तो ऐसे कई तरीके हैं, जिससे हम अकेले और सामूहिक रूप से धरती को बचाने में योगदान दे सकते हैं। वैसे तो हमें हर दिन को पृथ्वी दिवस मानकर उसके संरक्षण के लिए कुछ न कुछ करते रहना चाहिए। लेकिन, अपनी व्यस्तता में व्यस्त इंसान यदि विश्व पृथ्वी दिवस के दिन ही थोड़ा बहुत योगदान दे तो धरती के कर्ज को उतारा जा सकता है। और एक बार फिर से इस स्वर्ग में तब्दील किया जा सकता है। 

खोता हुआ धरती का श्रंगार:-

"आज हर इंसान अपनी गाड़ी को छांव में खड़ी करना चाहता है, पर पता नहीं ऐसा कौन सा कारण है, कि वह वृक्ष लगाना नहीं चाहता।"

       
आज हम जिस प्राणवायु को ग्रहण कर रहे हैं। वह हमें वृक्षों से मिलती है, और वृक्ष हमारी वह सभी मूलभूत आवश्यकता को भी पूरी करते हैं, जो हमारी दिनचर्या को सहज और आसान बनाती है।

       

इसीलिए आज हमें जरूरत है, तो हमारी पृथ्वी के हरे भरे श्रंगार की, क्योंकि अगर आज हम वृक्ष नहीं लगाएंगे, तो आने वाला समय मानव-पीढ़ी के लिए एक ऐसा खतरा बनेगा, कि इंसान उसकी चोट से फिर कभी उभर नहीं पाएगा।

       
इसलिए जितना हो सके अपने जीवन में वृक्ष लगाने का मौका कभी ना छोड़े। अपने जीवन का एक अमूल्य क्षण इन वृक्षों को भी दें, जिसकी बदौलत हमें स्वच्छ प्राणवायु एवं जल मिलता है, और वह सब कुछ मिलता है, जिसकी हर एक जीवन को आवश्यकता होती है। अगर हम हमारी पृथ्वी के सौंदर्य को संजो कर नहीं रखेंगे तो, जिसे हम घर कहते हैं, वह घर एक दिन पूरी तरह नष्ट हो सकता है।

पॉलिथीन और प्लास्टिक से बचाएं 
अपनी धरती मां को:-

         
आज हमें जरूरत है, तो उन सभी प्लास्टिक संबंधित चीजों को उपयोग में न लाने की,  जिसकी वजह से हमारी पृथ्वी को सबसे ज्यादा हानि पहुंचती है। हमें पृथ्वी पर हमारे साथ दूसरे जीवन की रक्षा का कर्तव्य भी उठाना चाहिए। क्योंकि जिस तरह यह पृथ्वी हमारे जीवन का आधार है, उसी प्रकाश से हमारे वन्य जीव-जंतु, पशु-पक्षी, और समुंद्र में व्याप्त असीम जीव-संपदा की रक्षा का भी हमें ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि, यह है तो हम हैं, नहीं तो कुछ भी शेष नहीं रहेगा।

       
जिस तरीके से हम अपने जीवन को सहज बनाते हैं उसी तरीके से हम अपनी भूल को सुधार कर उनके जीवन को भी सहज बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। ताकि हमारी पृथ्वी एक बार फिर से स्वर्ग में तब्दील हो सके, और जिस पृथ्वी पर हम गर्व करते हैं, वह एक बार फिर से अपने हरियाली के श्रृंगार से परिपूर्ण हो सके, तभी जाकर हम अपनी धरा को जिस मां की संज्ञा देते है  वह तभी सार्थक होगा, जब खोया हुआ सौंदर्य वापस लौट पाएगा।
और जिस "वसुदेव कुटुंबकम्" की अवधारणा हम हमारे दिलों में सजाए बैठे हैं, उसको पूरा करने के लिए हमेंं तन-मन-धन से इसे निभाना होगा।

आशा करता हूं, मेरा आज का यह ब्लॉग आपको जरूर पसंद आया होगा।

आपके विचार कि मुझे प्रतीक्षा रहेगी, तो कमेंट करके जरूर बताइएगा, जिससे मैं, अपने आने ब्लॉग को आपके लिए और भी रुचिकर बना सकु। 

 आप सभी का मेरे ब्लॉग पर आकर,  पढ़ने के लिए "हृदय की गहराइयों से बहुत-बहुत धन्यवाद"


Post a Comment

Previous Post Next Post
Responsive Advertisement
Responsive Advertisement
Responsive Advertisement